Siddha Kunjika Stotram महात्म :-
Siddha Kunjika Stotram वास्तव में सफलता की कुंजी है। इसके बिन सप्तशती का पाठ पुर्ण नहीं माना जाता है। षट्कर्म में भी Siddha Kunjika Stotram रामबाण की तरह कार्य करता है परंतु जब तक इसकी ऊर्जा को साधक अपने में समाहित नहीं कर लेता है तब तक इस का पूर्ण प्रभाव साधक को प्राप्त नहीं होता है।
शिव डामर तंत्र में स्थित Shri Siddha Kunjika Stotram की महत्ता रुद्रयामल तंत्र में भी बताया गया है। रुद्रयामल तंत्र के अनुसार सप्तशती का पाठ इसके के बिना पूर्ण नहीं माना जाता है।
स्वतंत्र रूप से इसका पाठ करने से मारण मोहन वशिकरण स्तंभन उच्चाटन आदि कार्य सिद्ध होते है । इसका नित्य प्रति पाठ करने से असाधारण कार्य भी सिद्ध हो जाते हैं।
इस स्त्रोत के रचियता भगवान शिव है । रुद्रयामल तंत्र मे अनुसार कुंजिया पाठ मात्रेन दुर्गा पाठ फलम लभेत । इसका पाठ करने मात्र से चण्डी के सम्पूर्ण पाठ का फल स्वतः ही मिल जाता है।
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इसके प्रथम चार श्लोकों में शिव और गौरी के संवाद की चर्चा है जिसमें इसके महात्म को बताया गया है।
इनमें भगवान शिव माता पावती को इस स्त्रोत के माध्यम से चण्डी देवी के गुप्त विधि को बता रहे है कि देवी तुम्हीं सर्व शक्तिमान हो, तुम्ही जम्भनी हो, तुम्हीं काली हो अपनी शक्तियों को जानो और अपने साधकों को अभिष्ट शक्तियां प्रदान करो।
इस स्त्रोत में जिस प्रकार भगवान शिव माता पार्वती को अपने स्वयं की शक्तियों के बारे में बताया है स्वयं की शक्तियों को जागृत करने के बारे में बताया है, उसी प्रकार साधक इस स्त्रोत में मां की शक्तियों का वर्णन करता है, ताकि वे सभी शक्ति स्वंय के लिए जाग्रत कर सकें । इसमें भी एक मंत्र बताया गया हैं और बाद में कुंजिया स्त्रोत जिसका पाठ करने से ही इस मंत्र की सिद्धी होती है। अर्थात् इसको मंत्रों से अभिमंत्रित किया जाता है। प्राण प्रतिष्ठा किया जाता है। इसकी विधि बताई गई है।
यह Siddha Kunjika Stotram परम कल्याणकारी स्त्रोत है भगवान शिव के अनुसार इस स्त्रोत को किसी नास्तिक, धूर्त, , कामी मनुष्य को नहीं बताना चाहिए । यह स्त्रोत किसी परम सिद्ध पुरुष को ही इसका ज्ञान देना चाहिए
इसी स्त्रोत में भगवान शिव ने कहा है कि –
इदं तु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे। अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति।।
अर्थात् भगवान शिव कहते है, कि हे पार्वती सप्तशती देवी का यह मंत्र मेरे लिए सिद्ध करो , यह कुंजिका स्तोत्र मंत्र को जगाने के लिए है । इसे भक्ति हिन पुरुष को नहीं देना चाहिए, हे पार्वती इसे गुप्त रखो , हे देवी जो बिना कुंजिका स्तोत्र के सप्तशती का पाठ करता है। उसे उसी प्रकार से सिद्धी नहीं मिलती , जिस प्रकार वन में रोना निरर्थक होता हैं।
इससे यह स्पष्ट होता है कि यह अत्यंत गुप्त और सिद्ध मंत्र है। इस स्तोत्र के माध्यम से साधक उन शक्तियों को जाग्रत करता है, जिनकी सिद्धी योगी जन कई दिनो तक साधना करते है। लेकिन इसमें कई गुप्त क्रियाएं होती है , जैसे की शिव जी उपरोक्त कथन में कहा है इस स्त्रोत को गुप्त ही रखो क्योंकि यदि किसी गलत व्यक्तियों के हाथों में लग जाएगा तो बहुत बना अनर्थ हो सकता है।
इस स्त्रोत की महीमा का वर्णन करना तुक्ष मनुष्य के लिए संभव नही है। यह अत्यंत दिव्य शक्तियों को जागृत करने वाला स्त्रोत है। इत स्त्रोत के माध्यम से निम्न दिव्य शक्तियां स्वतः ही सिद्ध हो जाते हैं । महामृत्युंज्य , गणेश, महाकाली ज्वाला देवी रुद्र शक्ति प्रकृत्ति दल महाविद्या जमभिनी भैरवी खेचरी आदि शक्तियों का जागरण इसी स्त्रोत से होता है।
Siddha Kunjika Stotram – मंत्र
विनियोग :
ॐ अस्य श्री कुन्जिका स्त्रोत्र मंत्रस्य सदाशिव ऋषिः , अनुष्टुपछंदः श्रीत्रिगुणात्मिका देवता ॐ ऐं बीजं ॐ ह्रीं शक्तिः ॐ क्लीं कीलकं मम सर्वाभीष्टसिध्यर्थे जपे विनयोगः ।
करन्यासः
ऐं अंगुष्ठाभ्यां नमः | ह्रीं तर्जनीभ्यां स्वाहा । क्लीं मध्यमाभ्यां वपट | चामुण्डायै अनामिकाभ्यां हुं । विच्चे कनिष्ठिकाभ्यां वौपट | ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे करतलकर प्रष्ठाभ्यां फट ।
हृदयादिन्यासः
ऐं हृदयाय नमः । ह्रीं शिरसे स्वाहा । क्लीं शिखायै वषट । चामुण्डायै कवचाय हुं । विच्चे नेत्रत्रयाय वौषट। ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे करतलकरप्रष्ठाभ्यां फट ।
Siddha Kunjika Stotram – मूल पाठ
शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजाप: भवेत्।।1।।
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्।।2।।
कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्।।3।।
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति। मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्। पाठमात्रेण संसिद्ध् येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।।4।।
अथ मंत्र :- Siddha Kunjika Stotram
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं स:ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वलऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।”
।। इति मंत्र:।।
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।नम: कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिन।।1।।
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन।।2।।
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।।3।।
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।।4।।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण।।5।।
धां धीं धू धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु।।6।।
हुं हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः।।7।।
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षंधिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा।।पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा।। 8।।
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे।।
इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे। अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति।।
यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्।न तस्य जायते सिद्धिररण्ये यथा।।
।। इति श्री रुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती संवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम् ।।
*Siddha Kunjika Stotram*
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