श्री नील सरस्वती स्तोत्र – Neel Saraswati stotram
माँ नील सरस्वती को देवी तारा का रूप माना जाता है। इसका पाठ करने वाला मनुष्य ज्ञात और गुप्त दोनों प्रकार के शत्रुओं पर विजय पा लेता है।
शुभ तिथियों में अर्थात् अष्टमी, नवमी या चतुर्दशी के दिन श्री नील सरस्वती स्तोत्रम – Neel Saraswati stotram का जाप करने से वह निश्चित रूप से कुछ ही महीने में अपने सभी शत्रुओं से छुटकारा पा लेता है। इसमें एक तनिक भी संदेह नहीं होना चाहिए। श्री नील सरस्वती स्तोत्रम के पाठ के उपरांत देवी को योनी मुद्रा दिखाने से देवी की असीम कृपा प्राप्त होती है।
Neel Saraswati stotram ।। स्तोत्र प्रारंभ ।।
घोररूपे महारावे सर्वशत्रुभयंकरि।
वरदे देवि त्राहि मां शरणागतम् ।।1।।
ॐ सुरासुरार्चिते देवि सिद्धगन्धर्वसेविते।
जाड्यपापहरे देवि त्राहि मां शरणागतम्।।2।।
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जटाजूटसमायुक्ते लोलजिह्वान्तकारिणि।
द्रुतबुद्धिकरे देवि त्राहि मां शरणागतम्।।3।।
सौम्यक्रोधधरे रूपे चण्डरूपे नमोSस्तु ते।
सृष्टिरूपे नमस्तुभ्यं त्राहि मां शरणागतम्।।4।।
जडानां जडतां हन्ति भक्तानां भक्तवत्सला।
मूढ़तां हर मे देवि त्राहि मां शरणागतम्।।5।।
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वं ह्रूं ह्रूं कामये देवि बलिहोमप्रिये नम:।
उग्रतारे नमो नित्यं त्राहि मां शरणागतम्।।6।।
बुद्धिं देहि यशो देहि कवित्वं देहि देहि मे।
मूढत्वं च हरेद्देवि त्राहि मां शरणागतम्।।7।।
इन्द्रादिविलसदद्वन्द्ववन्दिते करुणामयि।
तारे ताराधिनाथास्ये त्राहि मां शरणागतम्।।8।।
अष्टभ्यां च चतुर्दश्यां नवम्यां य: पठेन्नर:।
षण्मासै: सिद्धिमाप्नोति नात्र कार्या विचारणा।।9।।
मोक्षार्थी लभते मोक्षं धनार्थी लभते धनम्।
विद्यार्थी लभते विद्यां विद्यां तर्कव्याकरणादिकम।।10।।
इदं स्तोत्रं पठेद्यस्तु सततं श्रद्धयाSन्वित:।
तस्य शत्रु: क्षयं याति महाप्रज्ञा प्रजायते।।11।।
पीडायां वापि संग्रामे जाड्ये दाने तथा भये।
य इदं पठति स्तोत्रं शुभं तस्य न संशय:।।12।।
इति प्रणम्य स्तुत्वा च योनिमुद्रां प्रदर्शयेत
।। इति श्री नीलसरस्वती स्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।
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