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गुप्त श्री सिद्ध कुंजिका स्तोत्र – Siddha Kunjika Stotram

Siddha Kunjika Stotram महात्म :- Siddha Kunjika Stotram वास्तव में सफलता की कुंजी है। इसके बिन सप्तशती का पाठ पुर्ण नहीं माना जाता है। षट्कर्म में भी Siddha Kunjika Stotram रामबाण की तरह कार्य करता है परंतु जब तक इसकी ऊर्जा को साधक अपने में समाहित नहीं कर लेता है तब तक इस का पूर्ण […]

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Shri Shani Chalisa – श्री शनि चालीसा

  || Shri Shani Chalisa || || श्री शनि चालीसा || ॥ दोहा Shani Chalisa॥ “जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल, दीनन के दुःख दूर करि, कीजै नाथ निहाल, जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज, करहूँ कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज “ जयति जयति शनिदेव दयाला करत सदा भक्तन

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Gayatri Mantra | विभिन्न देवी – देवताओं के गायत्री मंत्र

ऋग्वेद में Gayatri Mantra को ॐ के समतुल्य बताया गया है हमारे सनातन धर्म में सभी देवी देवताओं के लिए विशेष मंत्र बताएं गए है , जिससे इनकी अराधना भी जाती है । किंतु इन मंत्रों के साथ साथ प्रत्येक देवी देवताओं के लिए Gayatri Mantra भी बताएं गए है , जिससे इसकी महत्ता और

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Sri Dakshinakali kavach – श्री दक्षिणकाली कवच

Sri Dakshinakali kavach श्री दक्षिणकाली का रूप भक्तों के लिए अत्यंत शुभ होती है और Sri Dakshinakali kavach में इन्हें भक्ति से आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है । उत्तरा तंत्र से लिया गया यह Sri Dakshinakali kavach है, जिसक ऋषि भैरव देवता दक्षिणा काली हैं। इसका विनियोग सर्वसिद्धी अर्थात् सभी कामनाओं की पूर्ति

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Shri Ganpati Atharvashirsha – गणपत्यथर्वशीर्​षोपनिषत्

॥ श्री गणपत्यथर्वशीर्​षोपनिषत् ॥ ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः ।भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवाग्‍ँसस्तनूभिः ।व्यशेम देवहितं यदायूः । स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः ।स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः ।स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ ॐ नमस्ते गणपतये ॥ 1 ॥ त्वमेव प्रत्यक्षं तत्त्वमसि ।त्वमेव केवलं कर्ताऽसि ।त्वमेव केवलं धर्ताऽसि ।त्वमेव केवलं हर्ताऽसि ।त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि ।त्वं साक्षादात्माऽसि नित्यम् ॥ 2 ॥ ऋतं वच्मि । सत्यं वच्मि ॥ 3 ॥ अव त्वं माम् ।अव वक्तारम् ।अव श्रोतारम् ।अव दातारम् ।अव धातारम् ।अवानूचानमव शिष्यम् । अव पुरस्तात् ।अव दक्षिणात्तात् ।अव पश्चात्तात् ।अवोत्तरात्तात् ।अव चोर्ध्वात्तात् ।अवाधरात्तात् ।सर्वतो मां पाहि पाहि समन्तात् ॥ 4 ॥ त्वं वाङ्मयस्त्वं चिन्मयः ।त्वमानन्दमयस्त्वं ब्रह्ममयः ।त्वं सच्चिदानन्दाऽद्वितीयोऽसि ।त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि ।त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि ॥ 5 ॥ सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते ।सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति ।सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति ।सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति । त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभः ।त्वं चत्वारि वाक् परिमिता पदानि । त्वं गुणत्रयातीतः ।त्वं अवस्थात्रयातीतः ।त्वं देहत्रयातीतः ।त्वं कालत्रयातीतः । त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यम् ।त्वं शक्तित्रयात्मकः ।त्वां योगिनो ध्यायन्ति नित्यम् । त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वंरुद्रस्त्वमिन्द्रस्त्वमग्निस्त्वंवायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चन्द्रमास्त्वंब्रह्म भूर्भुवस्सुवरोम् ॥ 6 ॥ गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादींस्तदनन्तरम् ।अनुस्वारः परतरः ।अर्धेन्दुलसितम् ।तारेण ऋद्धम् ।एतत्तव मनुस्वरूपम् ॥ 7 ॥ गकारः पूर्वरूपम् ।अकारो मध्यरूपम् ।अनुस्वारश्चान्त्यरूपम् ।बिन्दुरुत्तररूपम् ।नादस्संधानम् ।सग्ं‌हिता संधिः ॥ 8 ॥ सैषा गणेशविद्या ।गणक ऋषिः ।निचृद्गायत्रीच्छन्दः ।गणपतिर्देवता ।ॐ गं गणपतये नमः ॥ 9 ॥ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि ।तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ॥ 10 ॥ एकदन्तं चतुर्हस्तं पाशमङ्कुशधारिणम् ।रदं च वरदं हस्तैर्बिभ्राणं मूषकध्वजम् ॥रक्तं लम्बोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम् ।रक्तगन्धानुलिप्ताङ्गं रक्तपुष्पैस्सुपूजितम् ॥ भक्तानुकम्पिनं देवं जगत्कारणमच्युतम् ।आविर्भूतं च सृष्ट्यादौ प्रकृतेः पुरुषात्परम् ।एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वरः ॥ 11 ॥ नमो व्रातपतये ।नमो गणपतये ।नमः प्रमथपतये ।नमस्तेऽस्तु लम्बोदरायैकदन्तायविघ्ननाशिने शिवसुताय वरदमूर्तये नमः ॥ 12 ॥ एतदथर्वशीर्षं योऽधीते स ब्रह्मभूयाय कल्पते ।स सर्वविघ्नैर्न बाध्यते ।स सर्वत्र सुखमेधते ।स पञ्चमहापापात्प्रमुच्यते । सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति ।प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति ।सायं प्रातः प्रयुञ्जानो पापोऽपापो भवति ।सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति ।धर्मार्थकाममोक्षं च विन्दति ॥ 13 ॥ इदमथर्वशीर्षमशिष्याय न देयम् ।यो यदि मोहाद्दास्यति स पापीयान् भवति ।सहस्रावर्तनाद्यं यं काममधीते तं तमनेन साधयेत् ॥ 14

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Madhurashtakam – श्रीमद्वल्लभाचार्यविरचितं मधुराष्टकं

मधुराष्टकम्-Madhurashtakam अधरं मधुरं वदनं मधुरंनयनं मधुरं हसितं मधुरम् ।हृदयं मधुरं गमनं मधुरंमधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥ 1 ॥ वचनं मधुरं चरितं मधुरंवसनं मधुरं वलितं मधुरम् ।चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरंमधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥ 2 ॥ Read more : Shri Vishnu Aarti Lyrics – श्री विष्णु आरती वेणु-र्मधुरो रेणु-र्मधुरःपाणि-र्मधुरः पादौ मधुरौ ।नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरंमधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥ 3 ॥ गीतं

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Sri Saraswati Stotram – Ya Kundendu Tushara

श्री सरस्वती स्तोत्रम् या कुंदेंदु तुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृताया वीणावरदंडमंडितकरा या श्वेतपद्मासना ।या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैस्सदा पूजितासा मां पातु सरस्वती भगवती निश्शेषजाड्यापहा ॥ 1 ॥ दोर्भिर्युक्ता चतुर्भिः स्फटिकमणिनिभै रक्षमालांदधानाहस्तेनैकेन पद्मं सितमपिच शुकं पुस्तकं चापरेण ।भासा कुंदेंदुशंखस्फटिकमणिनिभा भासमानाzसमानासा मे वाग्देवतेयं निवसतु वदने सर्वदा सुप्रसन्ना ॥ 2 ॥ सुरासुरैस्सेवितपादपंकजा करे विराजत्कमनीयपुस्तका ।विरिंचिपत्नी कमलासनस्थिता सरस्वती नृत्यतु वाचि मे सदा ॥

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Sri Raja Rajeswari Ashtakam – श्री राजराजेश्वर्यष्टकम्

श्री राज राजेश्वरी अष्टकम् अंबा शांभवि चंद्रमौलिरबलाऽपर्णा उमा पार्वतीकाली हैमवती शिवा त्रिनयनी कात्यायनी भैरवीसावित्री नवयौवना शुभकरी साम्राज्यलक्ष्मीप्रदाचिद्रूपी परदेवता भगवती श्रीराजराजेश्वरी ॥ 1 ॥ अंबा मोहिनि देवता त्रिभुवनी आनंदसंदायिनीवाणी पल्लवपाणि वेणुमुरलीगानप्रिया लोलिनीकल्याणी उडुराजबिंबवदना धूम्राक्षसंहारिणीचिद्रूपी परदेवता भगवती श्रीराजराजेश्वरी ॥ 2 ॥ अंबा नूपुररत्नकंकणधरी केयूरहारावलीजातीचंपकवैजयंतिलहरी ग्रैवेयकैराजितावीणावेणुविनोदमंडितकरा वीरासनेसंस्थिताचिद्रूपी परदेवता भगवती श्रीराजराजेश्वरी ॥ 3 ॥ अंबा रौद्रिणि भद्रकाली बगला ज्वालामुखी

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Kalabhairavashtakam – श्री काल भैरव अष्टकम्

Shri Kalabhairavashtakam देवराज सेव्यमान पावनांघ्रि पंकजंव्यालयज्ञ सूत्रमिंदु शेखरं कृपाकरम् ।नारदादि योगिबृंद वंदितं दिगंबरंकाशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ 1 ॥ भानुकोटि भास्वरं भवब्धितारकं परंनीलकंठ मीप्सितार्ध दायकं त्रिलोचनम् ।कालकाल मंबुजाक्ष मस्तशून्य मक्षरंकाशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ 2 ॥ Kalabhairavashtakam शूलटंक पाशदंड पाणिमादि कारणंश्यामकाय मादिदेव मक्षरं निरामयम् ।भीमविक्रमं प्रभुं विचित्र तांडव प्रियंकाशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ 3 ॥ भुक्ति मुक्ति दायकं

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Daridraya Dahana Stotram – दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्रम्

दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्रम् – Daridraya Dahana Stotram विश्वेश्वराय नरकार्णव तारणायकर्णामृताय शशिशेखर धारणाय ।कर्पूरकांति धवलाय जटाधरायदारिद्र्यदुःख दहनाय नमश्शिवाय ॥ 1 ॥ गौरीप्रियाय रजनीश कलाधरायकालांतकाय भुजगाधिप कंकणाय ।गंगाधराय गजराज विमर्धनायदारिद्र्यदुःख दहनाय नमश्शिवाय ॥ 2 ॥ भक्तप्रियाय भवरोग भयापहायउग्राय दुःख भवसागर तारणाय ।ज्योतिर्मयाय गुणनाम सुनृत्यकायदारिद्र्यदुःख दहनाय नमश्शिवाय ॥ 3 ॥ चर्मांबराय शवभस्म विलेपनायफालेक्षणाय मणिकुंडल मंडिताय ।मंजीरपादयुगलाय जटाधरायदारिद्र्यदुःख

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Sri Saraswati Ashtottara Shatanamavali Stotram

Sri Saraswati Ashtottara Shatanamavali Stotram ॐ श्री सरस्वत्यै नमः ॥ 1 ॥ ॐ महाभद्रायै नमः ॥ 2 ॥ ॐ महामायायै नमः ॥ 3 ॥ ॐ वरप्रदायै नमः ॥ 4 ॥ ॐ श्रीप्रदायै नमः ॥ 5 ॥ ॐ पद्मनिलयायै नमः ॥ 6 ॥ ॐ पद्माक्ष्यै नमः ॥ 7 ॥ ॐ पद्मवक्त्रिकायै नमः ॥ 8 ॥ ॐ

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Saraswati Ashtottara Shatanama Stotram

श्री सरस्वती अष्टोत्तर शत नाम स्तोत्रम् सरस्वती महाभद्रा महामाया वरप्रदा ।श्रीप्रदा पद्मनिलया पद्माक्षी पद्मवक्त्रिका ॥ 1 ॥ शिवानुजा पुस्तकहस्ता ज्ञानमुद्रा रमा च वै ।कामरूपा महाविद्या महापातकनाशिनी ॥ 2 ॥ महाश्रया मालिनी च महाभोगा महाभुजा ।महाभागा महोत्साहा दिव्यांगा सुरवंदिता ॥ 3 ॥ महाकाली महापाशा महाकारा महांकुशा ।सीता च विमला विश्वा विद्युन्माला च वैष्णवी ॥ 4 ॥

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