कुछ बहुमूल्य totke एवं चमत्कारी तंत्र, मंत्र Part -1

Totke वास्तव में आपकी बुद्धि को प्रखर करने हेतु, आपकी सूझबूझ को उपयोगी एवं प्रभावोत्पादक तथा सफल बनाने के लिए मानसिक खुराक का कार्य करते हैं। इससे आपको अपने कार्यों में अवश्य सफलता प्राप्त हो सकती है, यह एक मानी हुई बात है। इसी कथ्य एवं सत्य के आधार पर निम्नलिखित प्रामाणिक एवं परखी हुई […]

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कर्मवादी होते हैं सिंह राशि वाले लोग

सिंह राशि सिंह राशि, राशि चक्र की पांचवीं राशि है। इसका स्वरूप सिंह जैसा है। यह उग्र स्वभाव, दिवाबली, पूरब दिशा की निवासिनी, क्षत्रिय वर्ण, सतोगुणी, पुल्लिंग, दृढ़ शरीर दीर्घआकार, पशुयोनि, अग्नितत्व, चतुष्पद, धूम्रवर्ण, उष्ण प्रकृति, पीतधातु, दीर्घ शब्दकारी, अल्प संतति वाली है। इसका प्रभुत्व हृदय पर है. क्रोधित पुरुषों की जाति तथा स्वामी सूर्य

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Jupiter Mountain – अधिकार, नेतृत्व व लेखकीय गुण का परिचायक

jupiter mountain हथेली में तर्जनी अंगुली के मूल में स्थित क्षेत्र बृहस्पति क्षेत्र है। मुख्य रूप से इसे अधिकार नेतृत्व और लेखन का ग्रह माना जाता है। भारत में बृहस्पति को गुरु भी कहा जाता है। जिस व्यक्ति के हाथ में यह क्षेत्र उभार लिये हो, ऐसे व्यक्ति निश्चित रूप से महत्वाकांक्षी व स्वाभाविक रूप

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Amavasya Tithi 2023

वर्ष 2023 के सभी Amavasya Tithi की सूची और 2023 में Amavasya Tithi का सटीक प्रारंभ समय और समाप्ति समय ….. Tithi Start & End Time Amavasya tithi in January, 2023(Mauni Amavasya, Shani Amavasya) Jan 21, 6:18 am – Jan 22, 2:23 am Amavasya tithi in February, 2023 (Somvati Amavasya) Feb 19, 4:18 pm –

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Samudrik Shastra – सामुद्रिक शास्त्र

रोजगार-व्यापार के लिए सामुद्रिक शास्त्र -Samudrik Shastra सही रोजगार व्यवसाय के चुनाव के लिए हथेली पर स्थित ग्रह क्षेत्रों की भी जानकारी प्राप्त कर लेना आवश्यक है. कारण ग्रह किसी व्यक्ति की विशेषताओं को बताते हैं. रेखाओं के प्रभाव पर शुभाशुभ प्रभाव डालते हैं। भारतीय Samudrik Shastra में ग्रह क्षेत्रों का कोई उल्लेख नहीं मिलता,

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Yatra Muhurt – यात्रा मुहूर्त

जब आप किसी खास प्रयोजन हेतु यात्रा करने जा रहे हैं, तो उससे पूर्व yatra muhurt को ध्यान में रखते हुए यात्रा करें, ताकि आपकी यात्रा सुखद व सुफल हो | यात्रा से पूर्व दिशाशूल, नक्षत्र, चंद्रमा, तारा, शुभ नक्षत्र, योगिनी भद्रा, श्रेष्ठ, चौघड़िया आदि विचारणीय हैं । yatra muhurt में दिशाशूल: सोमवार तथा शनिवार

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Gayatri Mantra | विभिन्न देवी – देवताओं के गायत्री मंत्र

ऋग्वेद में Gayatri Mantra को ॐ के समतुल्य बताया गया है हमारे सनातन धर्म में सभी देवी देवताओं के लिए विशेष मंत्र बताएं गए है , जिससे इनकी अराधना भी जाती है । किंतु इन मंत्रों के साथ साथ प्रत्येक देवी देवताओं के लिए Gayatri Mantra भी बताएं गए है , जिससे इसकी महत्ता और

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Sri Dakshinakali kavach – श्री दक्षिणकाली कवच

Sri Dakshinakali kavach श्री दक्षिणकाली का रूप भक्तों के लिए अत्यंत शुभ होती है और Sri Dakshinakali kavach में इन्हें भक्ति से आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है । उत्तरा तंत्र से लिया गया यह Sri Dakshinakali kavach है, जिसक ऋषि भैरव देवता दक्षिणा काली हैं। इसका विनियोग सर्वसिद्धी अर्थात् सभी कामनाओं की पूर्ति

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Sadhana ke Neyam – साधना में नियम

Sadhana ke Neya     Sadhana ke Neyam, साधना में नियम का बहुत महत्व होता है । साधाना में नियम Sadhana ke Neyam का पालन कर ही साधना की पूर्ण फल की प्राप्ति की कामना पूरी हो सकती है। नियम के बिना साधना की ही नहीं जा सकती हैं अर्थात् साधना पूर्ण नहीं होती है।

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Shri Ganpati Atharvashirsha – गणपत्यथर्वशीर्​षोपनिषत्

॥ श्री गणपत्यथर्वशीर्​षोपनिषत् ॥ ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः ।भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवाग्‍ँसस्तनूभिः ।व्यशेम देवहितं यदायूः । स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः ।स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः ।स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ ॐ नमस्ते गणपतये ॥ 1 ॥ त्वमेव प्रत्यक्षं तत्त्वमसि ।त्वमेव केवलं कर्ताऽसि ।त्वमेव केवलं धर्ताऽसि ।त्वमेव केवलं हर्ताऽसि ।त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि ।त्वं साक्षादात्माऽसि नित्यम् ॥ 2 ॥ ऋतं वच्मि । सत्यं वच्मि ॥ 3 ॥ अव त्वं माम् ।अव वक्तारम् ।अव श्रोतारम् ।अव दातारम् ।अव धातारम् ।अवानूचानमव शिष्यम् । अव पुरस्तात् ।अव दक्षिणात्तात् ।अव पश्चात्तात् ।अवोत्तरात्तात् ।अव चोर्ध्वात्तात् ।अवाधरात्तात् ।सर्वतो मां पाहि पाहि समन्तात् ॥ 4 ॥ त्वं वाङ्मयस्त्वं चिन्मयः ।त्वमानन्दमयस्त्वं ब्रह्ममयः ।त्वं सच्चिदानन्दाऽद्वितीयोऽसि ।त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि ।त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि ॥ 5 ॥ सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते ।सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति ।सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति ।सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति । त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभः ।त्वं चत्वारि वाक् परिमिता पदानि । त्वं गुणत्रयातीतः ।त्वं अवस्थात्रयातीतः ।त्वं देहत्रयातीतः ।त्वं कालत्रयातीतः । त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यम् ।त्वं शक्तित्रयात्मकः ।त्वां योगिनो ध्यायन्ति नित्यम् । त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वंरुद्रस्त्वमिन्द्रस्त्वमग्निस्त्वंवायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चन्द्रमास्त्वंब्रह्म भूर्भुवस्सुवरोम् ॥ 6 ॥ गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादींस्तदनन्तरम् ।अनुस्वारः परतरः ।अर्धेन्दुलसितम् ।तारेण ऋद्धम् ।एतत्तव मनुस्वरूपम् ॥ 7 ॥ गकारः पूर्वरूपम् ।अकारो मध्यरूपम् ।अनुस्वारश्चान्त्यरूपम् ।बिन्दुरुत्तररूपम् ।नादस्संधानम् ।सग्ं‌हिता संधिः ॥ 8 ॥ सैषा गणेशविद्या ।गणक ऋषिः ।निचृद्गायत्रीच्छन्दः ।गणपतिर्देवता ।ॐ गं गणपतये नमः ॥ 9 ॥ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि ।तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ॥ 10 ॥ एकदन्तं चतुर्हस्तं पाशमङ्कुशधारिणम् ।रदं च वरदं हस्तैर्बिभ्राणं मूषकध्वजम् ॥रक्तं लम्बोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम् ।रक्तगन्धानुलिप्ताङ्गं रक्तपुष्पैस्सुपूजितम् ॥ भक्तानुकम्पिनं देवं जगत्कारणमच्युतम् ।आविर्भूतं च सृष्ट्यादौ प्रकृतेः पुरुषात्परम् ।एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वरः ॥ 11 ॥ नमो व्रातपतये ।नमो गणपतये ।नमः प्रमथपतये ।नमस्तेऽस्तु लम्बोदरायैकदन्तायविघ्ननाशिने शिवसुताय वरदमूर्तये नमः ॥ 12 ॥ एतदथर्वशीर्षं योऽधीते स ब्रह्मभूयाय कल्पते ।स सर्वविघ्नैर्न बाध्यते ।स सर्वत्र सुखमेधते ।स पञ्चमहापापात्प्रमुच्यते । सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति ।प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति ।सायं प्रातः प्रयुञ्जानो पापोऽपापो भवति ।सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति ।धर्मार्थकाममोक्षं च विन्दति ॥ 13 ॥ इदमथर्वशीर्षमशिष्याय न देयम् ।यो यदि मोहाद्दास्यति स पापीयान् भवति ।सहस्रावर्तनाद्यं यं काममधीते तं तमनेन साधयेत् ॥ 14

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Madhurashtakam – श्रीमद्वल्लभाचार्यविरचितं मधुराष्टकं

मधुराष्टकम्-Madhurashtakam अधरं मधुरं वदनं मधुरंनयनं मधुरं हसितं मधुरम् ।हृदयं मधुरं गमनं मधुरंमधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥ 1 ॥ वचनं मधुरं चरितं मधुरंवसनं मधुरं वलितं मधुरम् ।चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरंमधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥ 2 ॥ Read more : Shri Vishnu Aarti Lyrics – श्री विष्णु आरती वेणु-र्मधुरो रेणु-र्मधुरःपाणि-र्मधुरः पादौ मधुरौ ।नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरंमधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥ 3 ॥ गीतं

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Sri Saraswati Stotram – Ya Kundendu Tushara

श्री सरस्वती स्तोत्रम् या कुंदेंदु तुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृताया वीणावरदंडमंडितकरा या श्वेतपद्मासना ।या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैस्सदा पूजितासा मां पातु सरस्वती भगवती निश्शेषजाड्यापहा ॥ 1 ॥ दोर्भिर्युक्ता चतुर्भिः स्फटिकमणिनिभै रक्षमालांदधानाहस्तेनैकेन पद्मं सितमपिच शुकं पुस्तकं चापरेण ।भासा कुंदेंदुशंखस्फटिकमणिनिभा भासमानाzसमानासा मे वाग्देवतेयं निवसतु वदने सर्वदा सुप्रसन्ना ॥ 2 ॥ सुरासुरैस्सेवितपादपंकजा करे विराजत्कमनीयपुस्तका ।विरिंचिपत्नी कमलासनस्थिता सरस्वती नृत्यतु वाचि मे सदा ॥

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