Love Merriage की क्या शर्ते है ? प्रेम विवाह होने के योग

Love Merriage के किसी भी विषय में कुंडली के प्रमुख रूप से सप्तम स्थान (most important) के अतिरिक्त द्वितीय स्थान एवं एकादश स्थान का अध्ययन आवश्यक है. कारण यह है कि कुंडली का लग्न स्थान से द्वितीय स्थान कुटुंब स्थान है और विवाह के बाद परिवार में एक व्यक्ति तो बढ़ता है एवं इस अतिरिक्त सदस्य से आनंद एवं संतान ह में वृद्धि होती है और इस आनंद का द्योतक एकादश स्थान , साथ ही विवाह विचार में सूर्य एवं चंद्र पर अन्य ग्रहों की दृष्टि का अध्ययन तथा सप्तम भाव पर पड़नेवाले ग्रहों का अध्ययन भी अति आवश्यक है ।

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पुरुष के विवाह में शुक्र ग्रह का तथा स्त्री के विवाह में मंगल ग्रह का प्रमुख स्थान है, इन दोनों ग्रहों पर प्रभाव डालनेवाले ग्रहों का भी अधिक असर होता है।

Love Merriage की क्या शर्ते है ? प्रेम विवाह होने के योग

Love Merriage के अध्ययन में शुक्र के अतिरिक्त कुंडली के पंचम स्थान एवं -पंचम स्थान के स्वामी का अध्ययन अति आवश्यक है. इसके अतिरिक्त LOVE के अध्ययन में कुंडली का द्वितीय, चतुर्थ सप्तम एवं द्वादश भावों का भी अध्ययन आवश्यक है, यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में शुक्र पर शनि या राहु की दृष्टि पड़ती हो या शुक्र एवं शनि राहु के साथ संबंध करता है, तो ऐसी स्थिति में वह व्यक्ति किसी कन्या (स्त्री) के साथ काम (Sex) के प्रभाव से प्रेम विवाह में बंधने का प्रयत्न करता है ।

दूसरे शब्दों में जब किसी की जन्म कुंडली में पंचम तथा सप्तम स्थान के स्वामी आपस में संबंध करते हों या दोनों में आपस में केंद्रवर्ती संबंध हो जाता है, तो वह व्यक्ति Love Merriage करता है और कोई भी शक्ति उस व्यक्ति को Love Merriage करने से रोक नहीं पाती यदि इन दोनों ग्रहों का संबंध कुंडली में शुभ स्थान में घटित होता है, तो Love Merriage का विरोध नहीं होता. वह समाज में मान्यता प्राप्त करने में सफल हो जाता है ।

यदि पुरुष की कुंडली का शुक्र एवं स्त्री की कुंडली का मंगल एक दूसरे से छठवें एवं बारहवें घरों में हों. या एक दूसरे से दूसरे या बारहवें स्थान में हो तो दोनों (स्त्री एवं पुरुष) एक दूसरे से घृणा करेंगे ।

यदि स्त्री का मंगल एवं पुरुष का शुक्र आपस में पारस्परिक रूप से केंद्र में या त्रिकोण स्थान में हो तो दोनों में एक दूसरे से अत्यधिक प्रेम होगा ।

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निम्नलिखित कुंडली को देखिए

Love Merriage की क्या शर्ते है ? प्रेम विवाह होने के योग
जन्म कुंडली-1

इस कुंडली में सप्तमेश एवं पंचमेश क्रमशः बुध एवं चंद्रमा एक दूसरे से केंद्र में हैं. फल-इस जातक का Love Merriage हुआ और इस प्रेम विवाह की समाज मान्यता भी मिली.

यदि सप्तमेश एवं पंचमेश ग्रह एवं दूसरे केंद्र में हो, किंतु दोनों दुष्ट स्थान में हो तो भी वह व्यक्ति या स्त्री प्रेम विवाह करेंगे, किंतु विवाह के पश्चात घर छोड़ कर अन्यत्र चले जायेंगे.

Love Merriage की क्या शर्ते है ? प्रेम विवाह होने के योग
जन्म कुंडली – 2

जन्म कुंडली-2 : में सप्तमेश एवं पंचमेश क्रमशः मंगल एवं बुध एक दूसरे केंद्र में होते हुए भी बारहवें तथा छठें स्थान में विराजमान हैं. फलतः इस कुंडली का जातक यद्यपि कि अति धनाढ्य परिवार का युवक था, एक अन्य जाति की कन्या से Love Merriage कर चुपचाप घर छोड़ कर अन्यत्र चला गया.

जबकि किसी की जन्म कुंडली में शुक्र, शनि या राहु ग्रह से दृष्टि करता हो या शुक्र का युति शनि या राहु से होती हो, तब अधिकांश ऐसी स्थिति में एक एक व्यक्ति काम भावना से आकर्षित होकर किसी कन्या से Love Merriage कर लेता है.जबकि सलमेश शनि से दृष्ट हो तो ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति का विवाह ऐसी कन्या से Love Merriage के रूप में होता है, जिसे वह व्यक्ति पहले से ही जानता हो.

कुंडली-3 को देखिये, इस कुंडली में सप्तमेश बुध पर शनि की पूर्ण दृष्टि (दसम दृष्टि) पड़ रही है. फलतः इस कुंडलीवाले युवक का विवाह अपने पड़ोस में रहने वाली लड़की से Love Merriage के रूप में संपन्न हो गया, किंतु चूंकिं जन्म कालीन शुक्र वक्री था- यह संबंध अधिक दिनों तक नहीं रह पाया एवं वह व्यक्ति उस पत्नी को छोड़ कर अन्यत्र चला गया.

Love Merriage की क्या शर्ते है ? प्रेम विवाह होने के योग
जन्म कुंडली-3

जन्म कुंडली में वक्री शुक्र एवं अष्टम स्थान में मंगल (नीच राशि का). राहु के साथ विराजमान हैं. इस जन्म- चक्र में गुरु की बुध पर दृष्टि भी वक्री शुक्र की रक्षा नहीं कर सका एवं Love Merriage दर्भाग्यपूर्ण रहा..

यदि किसी जन्म कुडली में सप्तमेश एवं शुक्र दोनों एवं शुक्र दोनों पर शनि की दृष्टि पड़ रही हो तो वह जातक किसी ऐसी लड़की से विवाह करेगा, जिसे वह पहले से ही प्रेम करता हो, जबकि सप्तमेश एवं शनि दोनों ही शुक्र के साथ संबंध बनाता हो तो भी व्यक्ति Love Merriage के बंधन में फंस जाता है.

शनि शुक्र के साथ होने पर या यदि शनि की दृष्टि शुक्र पर पड़े तो ऐसे जातक का किसी कन्या से गहरा प्रेम हो जाता है तथा दोनों एक दूसरे के प्रति गहरे रूप से आकर्षित हो जाते हैं, किंतु दोनों यह जान पहचान एवं घनिष्ठ आकर्षण अचानक टूट जाता है एवं वे दोनों विवाह से वंचित हो जाते हैं, किंतु यदि राहु योग कारक हो या किसी शुभ ग्रह के घर में हो तो दोनों में संबंध अंततोगत्वा विवाह में परिणति हो जायेगा ।

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जबकि द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम एवं बारहवां घर एवं इन घरों के स्वामी बुरी तरह से प्रभावित हो तो दोनों में प्रेम अंत में विवाह के रूप में परिणत नहीं होगा. शुक्र के साथ या शुक्र पर दृष्टि डालने वाला शनि ग्रह दुष्ट हो तो Love Merriage दुखदायी सिद्ध होगा । जब तक राहु शुभ स्थान में या योग कारक नहीं हो तो वह विवाह संबंध में दरार (friction) डाल देगा ।

यदि केतु किसी जन्म चक्र में दुष्ट ग्रह हो या किसी अनिष्ट स्थान (6, 8, 12) में हो तथा उसके साथ शुक्र हो तो ऐसी स्थिति में व्यक्ति का स्त्री से प्रेम गुप्त रहेगा एवं दोनों में गुप्त विवाह होगा ही, किंतु अधिकांशतः दुष्ट स्थान का केतु जो शुक्र को प्रभावित कर रहा हो, Love Merriage दुःखद मोड़ लेगा ।

यदि जन्म कुंडली में किसी शुभ स्थान से शनि शुक्र को देख रहा हो तो जब गोचर में शनि किसी शुभ स्थान से शुक्र को देखता हो तभी जातक का प्रेम संबंध किसी नारी से होगा एवं दोनों विवाह बंधन में एक हो जायेंगे. यदि सप्तम स्थान में केतु शनि से दृष्ट हो तो ऐसी स्थिति में उस जातक का Love Merriage गुप्त रूप से होगा.

यदि शुक्र का संबंध सप्तमेश से हो या लग्नेश का किसी न किसी प्रकार संबंध सप्तमेश से हो तो उस जातक का निश्चित रूप से प्रेम संबंध होगा एवं यह ‘ संबंध विवाह में परिणित हो जावेगा (देखिये जन्म कुंडली-1) ऐसा बहुधा देखा गया है कि यदि लग्नेश सप्तम तथा में विराजमान है या सप्तमेश पर चंद्रमा. की दृष्टि पड़ रही हो तो ऐसी स्थिति में यह योग Love Merriage का कारक होता है.

स्त्री के काम-जीवन (Sex life) में मंगल का विशेष प्रभाव रहता है. पुरुष के काम-जीवन में शुक्र का प्रमुख योगदान रहता है, जबकि स्त्री की कुंडली में मंगल एवं पुरुष जातक की कुंडली के शुक्र दोनों एक ही राशि में पड़े हों उदाहरण के

लिए कन्या की कुंडली का मंगल एवं पुरुष की कुंडली का शुक्र दोनों ही कन्या (6) राशि में हो तो दोनों एक दूसरे को देखते ही प्रेम करने लगेंगे तथा दोनों में अंततोगत्वा विवाह होकर रहेगा. देखिये जन्म कुंडली-3 एवं 4.

जन्म कुंडली 4
जन्म कुंडली 5

यदि पुरुष की कुंडली का शुक्र एवं स्त्री की कुंडली का मंगल एक दूसरे से 6वें एवं 12वें घरों में हों या एक दूसरे से 2वें या 12वें स्थान में हो तो दोनों (स्त्री एवं पुरुष) एक दूसरे से घृणा करेंगे । स्त्री का मंगल एवं पुरुष का शुक्र आपस में पारस्परिक रूप से केंद्र में या त्रिकोण स्थान में हो तो दोनों में एक दूसरे से अत्यधिक प्रेम रहेगा।

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