स्त्री जातक के अध्ययन में हमारे ऋषियों ने कुंडली के त्रिशांश की वृहद व्याख्या की है । किसी भी राशि का तीसवां अंश (1/30) या 1 अंश Trishansh कहलाता है।
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विषम राशियों में त्रिशांश की इस प्रकार गणना की जाती है :-
विषम राशि | ग्रह | अंश |
1 | मंगल | 5 अंश |
3 | शनि | 5 अंश |
5 | गुरु | 8 अंश |
7 | बुध | 7 अंश |
9 | – | – |
11 | शुक्र | 5 अंश |
विषम राशियों में त्रिशांश की गणना :-
सम राशि | ग्रह | अंश |
2 | शुक्र | 5 अंश |
4 | बुध | 7 अंश |
6 | गुरु | 8 अंश |
8 | शनि | 5 डिग्री |
10 | मंगल | 5 डिग्री |
सम राशियों में त्रिशांश
प्रथम 5 डिग्री शुक्र द्वारा ,
दूसरे 7 डिग्री बुध द्वारा, इ
दूसरे 8 डिग्री गुरु द्वारा,
प्रथम 5 डिग्री शनि द्वारा ,
अंतिम 5 डिग्री मंगल द्वारा प्रभावित होते हैं
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विषम राशि में त्रिशांश
प्रथम प्रथम 5 डिग्री मंगल द्वारा,
दूसरे 5 डिग्री शनि द्वारा,
दूसरे 8 डिग्री गुरु द्वारा,
दूसरे 7 डिग्री बुध द्वारा तथा
अंतिम 5 डिग्री शुक्रे द्वारा प्रभावित रहते हैं ।
उपर्युक्त त्रिशांश का फल (विशेष कर स्त्री के चरित्र संबंधित) निम्नलिखित है –
ग्रह | त्रिमांशा | चरित्र |
लग्न/चंद्र (मेष या वृश्चिक राशि) | मंगल | अति नेष्ट |
शुक्र | विवाह पश्चात दूषित | |
बुध | अति चालाक एवं धूर्त | |
गुरू | पवित्र, नम्र, आदरणीय एवं प्रतिष्ठित | |
शनि | तुच्छ एवं काम शक्ति दूषित |
विवाह में विलंब होने के ज्योतिषीय कारण
व्यक्ति के जन्म कुंडली में निम्नलिखित योग होने से यह निश्चित हो जाता है कि जातक का विवाह तो होगा, किंतु अति निराशा एवं देर से –
1. यदि लग्न या चंद्रमा से शनि 1 या 3 या 5 या 7 या 10वें स्थान में विराजमान हो तथा उस शनि का स्वामित्व शुभ ग्रहों (beneficial Houses) पर नहीं हो । शनि का चंद्रमा से किसी भी प्रकार का संबंध पुर्नप्फू योग कहलाता है, जो विवाह में अतिशय देर कराता है, किंतु अंततोगत्वा एक सुखद जीवन व्ययतीत करता है ।
2. यदि कुंडली के सप्तम भाव में दुष्ट ग्रह पड़े हो तथा उस दुष्ट ग्रह या ग्रहों पर गुरु या यूरेनस (Uranus) की पाप दृष्टि पड़ रही है , तो भी विवाह में विलम्ब होता है।
3. यदि जन्म चक्र में मंगल तथा शुक्र एक साथ 5, 7 या 9वें भाव में हो तथा उन पर गुरु यूरेनस की दुष्ट (पापी) दृष्टि – पड़ रही है ।
4. यदि मंगल अष्टम भाव में पड़ा हो ।
5. यदि कुंडली के प्रथम या द्वितीय या लाभ भाव में चंद्रमा तथा शनि पड़े हों I
6. यदि शनि की दृष्टि सप्तमेश एवं शुक्र पर पड़ रही हो
7. यदि गुरु या यूरेनस चंद्रमा तथा शुक्र को वर्गाकार समन्वय करें ।
उपरोक्त योग बनने से विवाह में देरी होती हैं।