किसी भी जातक की कुंडली में यदि सप्तम स्थान में मंगल एवं राहु विराजमान हो तो उस व्यक्ति का Marriage अपने जाति से न हो कर किसी अन्य जाति की कन्या से होता है , तो इसे ही अंतरजातीय विवाह कहते है और वैधव्य योग अर्थात किसी स्त्री का विधवा हो जाना है,
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राहु से मुस्लिम एवं केतु से ईसाई समुदाय का बोध होता है, जबकि लग्न से सप्तम स्थान, सूर्य, चंद्र एवं शुक्र, शनि, मंगल या राहु ग्रहों से प्रभावित होते हैं एवं साथ ही जातक का द्वितीय स्थान भी दूषित हो तो उस जातक या जाति का विवाह अपने से अन्य जाति में होता है।
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द्वितीय स्थान रिश्तेदारों या संबंधियों को संकेत करता है और यदि यह (दूसरा) स्थान नेष्ट ग्रहों से प्रभावित हो तो वह व्यक्ति अपने रिश्तेदारों से घृणा करता है और ऐसे जातक का विवाह अपने जाति से अन्य जाति या धर्म के व्यक्तियों से होता है ।
कुंडली का पंचम एवं नवम स्थान (क्रमशः) दूषित हो तथा देवाचार्य गुरु दूषित रहें तो ऐसा जातक अपना धर्म बदलने में जरा सा भी हिचकिचाहट नहीं करता एवं अपने धर्म से अन्य धर्म की कन्या या स्त्री से विवाह कर लेता है।
वैधव्य योग :-
वैधव्य योग अर्थात किसी स्त्री का विधवा हो जाना । वैधव्य योग से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण योग –
1. यदि स्त्री जातक की जन्म कुंडली में सप्तमेश एवं अष्टमेश अष्टम स्थान में पड़े हों तथा उन पर क्रूर ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो तो उस नारी को वैधव्य योग से पीड़ित होना ही होगा ।
2. यदि राहु सप्तम हो एवं सप्तमेश सूर्य । के साथ हो तथा उस सूर्य पर अष्टमेश की दृष्टि पड़ रही हो, तो वह स्त्री अवश्य विधवा हो जायेगी ।
3. यदि सप्तम स्थान में राहु हो तथा सप्तमेश सूर्य के साथ अष्टमेश से देखा जाता हो तो ऐसी महिला को वैधव्य योग होगा।
4. यदि सप्तमेश शनि के साथ हो तथा इन दो ग्रहों के ऊपर चंद्र, मंगल एवं राहु की दृष्टि पड़ रही हो तो वैधव्य योग होगा ।
5. यदि लग्न पापी (Evil) नवमांश में हो तथा मंगल अष्टम स्थान में अष्टमेश के साथ हो तो वह स्त्री वैधव्य योग को भुगतना पड़ता है ।
6. यदि शनि तथा मंगल राहु के साथ सप्तम या अष्टम स्थान में विराजमान हों, तो भी वैधव्य योग रहेगा ही एवं यह योग विवाह के पश्चात शीघ्र होता है ।
7. यदि स्त्री की कुंडली में सप्तमेश एवं अष्टमेश 12वें स्थान में पड़े हो तथा साथ ही सप्तम भाव पर दुष्ट या क्रूर ग्रह की दृष्टि हो तो वैधव्य योग होगा ही तथा यह योग विवाह के पश्चात शीघ्र होगा ।
8. यदि सप्तम स्थान एवं सप्तमेश दो या दो से अधिक ग्रहों से घिरे हों अर्थात प्रभावित हों तथा उन पर शुभ ग्रहों की दृष्टि नहीं पड़ रही हो तो भी वैधव्य योग भुगतना ही पड़ता है ।
9. यदि कोई ग्रह अपने नीच राशि में पड़ा हो तथा साथ ही वह राशि क्रूर हो एवं इस क्रूर राशि का स्वामी क्रूर स्थान में हो तथा उस ग्रह पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि नहीं पड़े, तो ऐसे योग में स्त्री को वैधव्य योग से पीड़ित होना पड़ेगा ।