शास्त्रों के अनुसार, कर्ज, शत्रु और रोग इनको कभी साधारण या छोटा न समझें, इनकी तरफ से लापरवाह न रहें और इनसे जल्द से जल्द छुटकारा पाने का पूरा प्रयत्न , इनको जड़ से समाप्त करना जरूरी होता है । ग्रह के अशुभ प्रभाव और इससे बचने के उपाय –
चंद्रमा :
संसार को तप्त करने वाला सूर्य है, तो उसकी किरण से प्रदग्ध मानव की शांति के लिए शीत रश्मि चंद्रमा भी है। सूर्य की तरह चंद्रमा ग्रह के अशुभ प्रभाव मानव शरीर पर पड़ता है। मानव जीवन में चंद्रमा मन का प्रतिनिधित्व करता है। इसे काल पुरुष का मन भी कहा जाता है। इसके द्वारा जातक के मन, अंतःकरण, मानसिक स्थिति, कोमलता तथा हृदय की दयालुता के संबंध में जानकारी प्राप्त होती है।
इसका अधिकार क्षेत्र मनुष्य के शरीर में गले से हृदय तक अंडकोष तथा गर्भाशय है। इसके द्वारा मनुष्य के शरीर में होने वाले रोगों के विषय में जानकारी प्राप्त होती है।
इस ग्रह के अशुभ प्रभाव से जातक आलस्य, नेत्र रोग, जल रोग, कफ रोग से पीड़ित रहता है।
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चंद्रमा के अशुभ प्रभाव से ही स्त्री संसर्गजन्य रोग, पीनस रोग तथा मानसिक विकार, पेशाब में जलन, पित्ताशय की पथरी, सर्दी जुकाम जैसे रोग उत्पन्न होते हैं। ऐसे रोगों से प्रभावित रहने का कारण यह है कि चंद्रमा ग्रह उपरोक्त रोगों का प्रतिनिधित्व करता है।
जब जातक के जन्मांग चक्र में चंद्रमा अशुभ भाव में बैठा हो अथवा क्षीण चंद्र हो अथवा मीन राशि में अथवा शत्रु ग्रहों के साथ विद्यमान हो तो जातक को उपरोक्त रोगों में किसी एक अथवा अधिक रोगों से पीडित रहना पड़ता है।
चंद्रमा ग्रह के अशुभ प्रभाव से मासिक धर्म संबंधी रोग, जैसे- मासिक में रुकावट, मासिक के समय पीड़ा, अनियमितता, अधिक स्राव, बहुत कम साव , चंद्रमा का प्रतिकूल एवं अनुकूल प्रभाव मानव पर त्वरित एवं प्रभावशाली रूप में पड़ता है, जिसका मुख्य कारण एक यह भी है कि चंद्रमा पृथ्वी के सबसे नज़दीक स्थित है, जिसके फलस्वरूप चंद्रकिरणें अपना महत्वपूर्ण व चमत्कारिक प्रभाव मानद पर डालती हैं।
जो व्यक्ति उपरोक्त रोगों में किसी एक अथवा अधिक रोगों से पीड़ित है तथा डॉक्टर, वैद्य तथा औषधि सेवन करने से भी रोग वश में न आ रहे हों, तो ऐसी स्थिति में निम्न मंत्र का जप करने से विशेष लाभप्रद सिद्ध होगा – ‘दधिशंख तुषारामं, क्षीरोदार्णव सव्यहम् नमामि शशिनं सोमं शंभो मुर्कुटभूषणम्..
ध्यान रहे- उपरोक्त मंत्र का जप किसी शुक्ल पक्ष सोमवार (किसी रोहिणी नक्षत्र गत सोमवार) से प्रारंभ करें.ज्योतिष में चंद्रमा के अशुभ प्रभाव दूर करने के लिए मोती रत्न धारण को करना सर्वोत्कृष्ट माना गया है।
सावधानी – मोती रत्न धारण करने के पूर्व जातक को सर्वप्रथम उसके अनुकूल तथा प्रतिकूल प्रभाव के विषय में जानकारी होनी चाहिये, बिना विचार अथवा ज्योतिषीय परामर्श के रत्न धारण कर लेने से कभी-कभी भयंकर परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है. इसलिए रत्न धारण करने के पूर्व जातक सर्वप्रथम यह देख ले कि निम्न स्थितियों के अंतर्गत वह मोती रत्न धारण करने के योग्य है अथवा नहीं ।
मंगल :
सूर्य चंद्रमा की तरह मंगल ग्रह का अशुभ या शुभ प्रभाव मानव पर पड़ता है। शुभ प्रभाव से मानव प्रगति, साहस, उद्यम की ओर अग्रसर होता है,
मंगल ग्रह के अशुभ प्रभाव से जातक निम्न रोगों से ग्रसित हो जाता है –
यकृत व तिल्ली रोग, जैसे- पीलिया, गैस पीड़ा, गुर्दे खराब होना, बवासीर, खून की कमी, उच्च रक्तचाप, पथरी होना, सिरदर्द, वात प्रकोप, गठिया, जोड़ों के दर्द, संधिवात आदिं यकृत संबंधी रोग हैं. पक्षाघात (लकवा), मानसिक दुर्बलता, कफ-पित्त प्रकोप, अम्ल-पित्त (हाइपर ऐसेडिटी), सुस्ती, रक्त पित्त ।
बुध :
यह ग्रह तथा इससे उत्पन्न होनेवाले रोगों का उपचार इस प्रकार शास्त्रों में वर्णित है- “मानव जीवन पर नीच राशिस्थ” , शत्रुक्षेत्री अथवा निर्बल बुध के प्रभाव से निम्नलिखित रोग उत्पन्न होते हैं- रक्तचाप (बीपी), दमा, हृटयरोग, श्वासरोग, खांसी, सिरदर्द, शूल, वातप्रकोप, चक्कर आना, वाकदोष, अम्लपित्त, कमर दर्द, गठिया ।
गुरुः
इस ग्रह के अशुभ प्रभाव से निम्न रोग उत्पन्न होते हैं- कंठविकार, अनिद्रा, मोतीझरा (टाइफाइड), बवासीर, गलगंड (गोएटर), चर्बीजनित रोग, अतिसार आदि।
किसी भी व्यक्ति के कुंडली में , ग्रह के अशुभ प्रभाव से नीच राशिस्थ क्षीण अथवा शत्रु क्षेत्री होने पर अशुभ प्रभाव डालता हैं, जिसके फलस्वरूप उपरोक्त रोग जातक को पीड़ित करने लगते हैं. अतः इन रोगों से छुटकारा पाने के लिए किसी योग्य ज्योतिष से हस्तरेखा या कुंडली परीक्षण कर पुखराज रत्न धारण करें ।
शुक्रः
शुक्र ग्रह को काल पुरुष का ‘काम‘ माना गया है. यह ग्रह sexual Lifestyle , वीर्य, हाव-भाव, त्वचा का रंग, मैथुनिक रोग, स्त्री संसर्ग जन्य रोग तथा मनुष्य शरीर के गुप्तांग का प्रतिनिधित्व करता है। शुक्र ग्रह के अशुभ प्रभाव अर्थात् शुक्र निर्बल, अस्त अथवा वक्री हो तो जातक को निम्न रोगों का सामना करना पड़ता रोग, है- धुनर्वात (टिटेनस), स्वप्नदोष, हिस्टिरिया, दंतशूल (जैसे- दांत में कीड़ा लगना), प्रदर मधुमेह (डायबिटीज), एड्स, उन्माद और अनिद्रा ।
शनिः
किसी भी जातक का शनि ग्रह जब बली अथवा उच्च राशिस्थ होकर शुभ भाव में विद्यमान रहता है, तो लोकप्रियता, सार्वजनिक प्रसिद्धि, वाहन सुख, गृह सुख तथा सुख समृद्धि बढ़ाता है।
शनि ग्रह के अशुभ प्रभाव से अतुलनीय दुख एवं मानसिक संत्रास उत्पन्न करता है। किसी भी जातक के शनि निर्बल अथवा नीच राशिस्थ हो तो निम्न रोग उत्पन्न होता है- साइटिक (कमर दर्द), चर्म रोग (फोड़ा-फुंसी), कुष्ठ रोग, गठिया, उदर रोग (पेट दर्द), दृष्टि दोष, मिर्गी (अपस्मार), लकवा, दमा, पागलपन आदि ।
राहु और केतु :
किसी भी जातक के केतु ग्रह के अशुभ प्रभाव से राहु ग्रह जनित रोग ही उत्पन्न होते हैं। राहु और केतु दोनों छाया ग्रह हैं तथा दोनों की अशुभ स्थिति का प्रभाव एक समान ही होता है. केतु के अशुभ प्रभाव से निम्न रोग उत्पन्न होते हैं- चर्म रोग, कुष्ठ रोग, स्नायु संबंधी दर्द होते है। इससे मुक्ति पाने के लिए लहसुनिया रत्न धारण करना चाहिये।