9 ग्रह में सूर्य को विशेष प्रधानता व मान्यता दी गयी है, क्योंकि सूर्य के अशुभ प्रभाव या सूर्य के शुभ प्रभाव से ही व्यक्ति के यश, प्रतिष्ठा व धनप्राप्ति के विषय में भविष्य वाणी की जाती है। मानव का सर्वप्रथम ध्यान आकर्षण कराने वाली वस्तु है सूर्य…
परिमाण में बड़ा तथा प्रकाशमय होने के कारण तो इस पर दृष्टि हठात् चली ही जाती है, किंतु यह रोशनी देता है, जीवन देता है और जिंदगी की आशा भी देता है। ग्रहमंडल का यह सबसे बड़ा ग्रह है. वस्तुतः ग्रहमंडल का यही प्रतिनिधि और आधार भी है।
सूर्य के चारों ओर मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि परिक्रमा करते हैं। समस्त तारा समूह 12 राशियों में बंटा हुआ है. सूर्य ग्रह को सिंह राशि कृत्तिका व उत्तर फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ नक्षत्रों का स्वामित्व प्राप्त है। भारतीय वेदों और पुराणों में सूर्य को शनि का पिता माना गया है. पिता पुत्र होने के बाद भी शनि सूर्य आपस में शत्रुभाव रखते हैं।
मानव जीवन में सूर्य के अशुभ प्रभाव स्थिति होने पर निम्न रोग उत्पन्न होते हैं :-
पांडु रोग (पीलिया) :
इसमें पित्त पित्ताशय में जाने की अपेक्षा रक्त में मिलने लगता है। फलस्वरूप रोगी का सारा शरीर पीला हो जाता है। यह बीमारी ज्यादा होने पर आंखें हल्दी सी पीली हो जाती हैं। शरीर में रक्त बनना बंद हो जाता है।
नेत्र रोग:
हमारी पांचों ज्ञानेंद्रियों में आंखों का स्थान सर्वोपरि है। आंख संसार के कीमती से कीमती कैमरे के बहुत उत्कृष्ट क्वालिटी के लेंस की तरह काम करने वाली अमूल्य वस्तु है, विशेषज्ञों का अनुमान है कि दुनिया में डेढ़ करोड़ से भी अधिक लोग आंखों के रोग से अंधे हैं, जिनमें दो तिहाई केवल भारतवर्ष में हैं।सूर्य के अशुभ प्रभाव से निम्न नेत्र रोग होते हैं- आंख आना, आंख से पानी बहना, आंख की सूजन, मोतियाबिंद, नेत्रों में गंदगी आना (Conjunctivitis), पलकों पर दाने, रतौंधी, पलकों में खुजली
आदिक्षय रोग (T.B.) :
किसी जातक के षष्ठ भाव में मिथुन, कन्या अथवा मीन राशि हो तथा सूर्य अशुभ स्थिति में, तो ऐसे जातक प्रायः अत्यधिक मात्रा में शराब, धूम्रपान तथा अत्यधिक रतिक्रिया करने लगते हैं इसके साथ-साथ शारीरिक श्रम तथा अनियमित और कुपोषण युक्त आहार करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप टीबी यानी क्षय रोग (तपेदिक) जैसे रोग से पीड़ित हो जाते हैं।
हृदय रोग:
सूर्य के अशुभ प्रभाव से हृदय रोग भी उत्पन्न होता है। जब किसी भी जातक का सूर्य अशुभ स्थिति में रहता है, तब ऐसे जातक की अनुचित आहार-विहार और अति करने की प्रवृतिबढ़ जाती है. चिकित्सा शास्त्रों के अनुसार मुख का स्वाद खराब होना, भोजन में अरुचि होना, श्वास वेग, ज्वर, खांसी, कफ प्रकोप, उल्टी आदि हृदय रोग के प्रारंभिक लक्षण हैं। जब किसी व्यक्ति के ऊपर सूर्य का अशुभ प्रभाव ज्यादा होने लगता है, उस समय ऐसे व्यक्ति अधिक चिंता व तनाव में रहते हैं. इससे रात में नींद नहीं आती है. धूम्रपान, शराब तथा अधिक ऐय्याशी करने लगता है. कामवासना तथा रतिक्रिया करने की इच्छा ज्यादा होती है. इसके कारण हृदयरोग की संभावना ज्यादा होती है।
श्वेताणु वृद्धि (ज्वर):
सूर्य के अशुभ प्रभाव से जब मनुष्य विपरीत आहार विहार करने लगता है, तब आमाशय में रहने वाले वात, पित्त, कफ दोष, रस धातु के साथ होकर कोष्ठ की अग्नि को बाहर करके शरीर को तपा देते हैं, इसे ही ज्वर कहा जाता है.सूर्य के अशुभ प्रभाव से ज्वर के कई रूप होते हैं- साधारण ज्वर, शीत ज्वर, प्रसूतिका ज्वर, मलेरिया ज्वर, टाइफाइड ज्वर, तपेदिक बुखार
चर्मरोग :
सूर्य के अशुभ प्रभाव से जब मानव शरीर के रक्त में विकार होते हैं, तो उसकी परिणति दाद, खुजली, एक्जिमा, रसपित्ती आदि चर्म रोग के रूप में सामने आती है।
मस्तिष्क की दुर्बलता :
जन्म कुंडली में सूर्य की अशुभ स्थिति मस्तिष्क की दुर्बलता का कारण बनती है। स्नायुविक तथा मस्तिष्क की दुर्बलता से कुछ व्याधियां उत्पन्न होती हैं, जैसे- स्मरण शक्ति कमजोर हो जाना, अपस्मार, चित्तभ्रम, मूर्च्छा, घबराहट, थकावट, शारीरिक कमजोरी, धड़कन बढ़ना आदि।
जो व्यक्ति इस तरह के रोगों से ग्रसित हों तथा औषधि सेवन करने से रोग वश में न आ रहे हों, तो सूर्य ग्रह का प्रकोप समझना चाहिये. ऐसी स्थिति में निम्न सूर्य मंत्र का जप किसी भी रविवार से प्रारंभ करें- ‘ऊं ह्रां ह्रीं ह्रों सः सूर्याय नमः‘ अथवा ‘ऊं धृणि सूर्याय नमः.’प्रत्येक दिन कम से कम 11 माला का जप अवश्य करना चाहिये. अगर संभव हो सके तो प्रत्येक रविवार को उपवास भी करें।
सूर्य के अशुभ प्रभाव कम करने के लिए रत्न प्रयोग :
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सूर्य के अशुभ प्रभाव से उत्पन्न रोगों के शमन के लिए सूर्यरत्न माणिक्य रत्न धारण करना चाहिये।
माणिक्य के उपरत्न :
माणिक्य के अभाव में गारनेट, संगसितारा, लाल हकीक, लाल मूस्टोन, माणिक स्टार में से किसी एक को धारण किया जा सकता है.ध्यान रहे किसी भी रत्न का प्रयोग करने के पूर्व रत्न विशेषज्ञों तथा रत्नविद् ज्योतिषविदों के अनुसार विधिपूर्वक जांच कर लेनी चाहिये कि कहीं रत्न दूषित तो नहीं है. दूषित रत्न लाभ की बजाय हानि करने लगता है।
रत्न विभिन्न :
राशियों के लिए भिन्न-भिन्न वजन (तौल) का धारण किया जाता है. बेहतर होगा किसी रत्नविद ज्योतिषविद से जन्मकुंडली या हस्तरेखा दिखा कर परामर्श लें तथा रत्न को धारण करने से पूर्व उसे विधिपूर्वक शोधन करना चाहिये ।