रावण संहिता :
भारत वर्ष में ज्योतिष शास्त्र के ऊपर अनेकानेक ग्रंथ हैं । इनमें कुछ ऐसी संहिताएं एवं नाड़ी रहें ग्रंथ हैं, जैसे रावण संहिता, जिसमें मानव के तीनों जन्मों के विषय में फलाफल लिखे हैं । ये फल जन्मकुंडली के नाड़ी, अंशों पर आधारित हैं ।
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किसी एक राशि के 150वें अंश को नाड़ी अंश कहतें है । इस प्रकार 12 राशियों के कुल 1800 नाड़ी अंश हैं, इन्हीं 1800 नाड़ी अंशों के आधार पर हमारे आदरणीय, महान एवं दिव्य शक्ति वाले मुनियों जैसे भृगु, सप्त ऋषियों (अत्री, अगस्त, जमुनी, सोंगीनर, नारद, वशिष्ठ एवं विश्वामित्र) ने अपने दिव्य एवं अचूक ग्रंथों जैसे भृगुसंहिता, रावण संहिता (रावण विरचित), ने सप्तऋषि नाड़ी, भृगुनंदी नारी), देवकेशलम इत्यादि के माध्यम से प्रस्तुत किया है, जिसके मध्यम से मनुष्य / स्त्री (female) के तीनों जन्मों का फलाफल जाना जा सकता है । फलाफल प्रमुखतः नाड़ी अंशों पर आधारित हैं ।
ये नाड़ी अंश हैं: बसुधा, वैष्णवी, ब्राह्मी, शंकरी, सौम्य, माया, माधवी, कुंभीनी, कुटिला, माला, मुसला, डामिनी, कमला, मही, कांता, कला, दुर्धरा, अनिला, कराला, कुंडनी, प्रीता, दुर्भगा, निर्मला, सुखदा, ज्वाला, बाला, सोमावली, मंगला, मुद्रिका, सुधा इत्यादि ।
यदि किसी शुभग्रह पर तीन या तीन से अधिक पापग्रह अपना प्रभाव डाल रहें हों, तो वह शुभग्रह अशुभ ग्रह हो जाता है ।
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🔸महर्षि पाराशर ने कहा कि राहु एवं केतु अपने स्थान से 5वें, 7वें, 9वें तथा 12वें घरों को पूर्ण दृष्टि से तथा दूसरे एवं दशम स्थान को अर्द्ध दृष्टि से देखते हैं, जैसा कि – निम्नलिखित सूत्र से स्पष्ट हो जाता है –
‘सुत मदान नवान्दये पूर्ण दृष्टि से तमस्य’ युगल दशम गेहे दृष्टि वदांता’
चूंकि राहु एवं केतु छाया ग्रह हैं, वे उन ग्रहों के गुणों से अवश्य प्रभावित होते हैं, जो ग्रह उनके साथ हों या जो ग्रह (विशेष कर पापी ग्रह) उन पर दृष्टि डाल रहे हों ।
ऐसी स्थिति में साथ ही साथ राहु एवं केतु उन घरों पर जिन पर उनकी दृष्टि पड़ रही है, उन ग्रहों को गुणों / अवगुणों को भी स्थानांतरित कर देते हैं, जिनके साथ वे होते हैं तथा जिनकी दृष्टि उन पर पड़ती है ।
रावण संहिता के अनुसार यदि, दशम स्थान में राहु विराजमान हैं तथा मंगल में ग्रह चतुर्थ स्थान या दशम स्थान में है । ऐसी स्थिति में राहु पंचम दृष्टि से द्वितीय घर पर दृष्टि डालते हुए, द्वितीय स्थान पर मंगल के भी क्रूर प्रभाव को स्थानांतरित कर देगा ।
🔸सर्वार्थ चिंतामणि के पंचम अध्याय के दूसरे श्लोक के अनुसार –
” नाथै कलावात्मञ धर्म मानां पुत्रादि चिंतां कथवेत्जीर्वै बुद्धिस्तथा सोमसुतात्मजाभ्यां पितुस्यैवात्मज भाग्य सूर्ये “
अर्थात, पंचमेश, सप्तमेश एवं नवमेश ग्रहों तथा साथ ही साथ पुत्रकारक ग्रह गुरु ग्रह के सूक्ष्म अध्ययन के बाद ही पुत्र प्राप्ति योग का अध्ययन करना चाहिए ।
* रावण संहिता *