विवाह पुरुष एवं स्त्री का दैविक संबंध है । किसी ने सत्य ही कहा है कि विवाह ईश्वर के यहां ही निश्चित हो जाता है और ये विवाह धरती पर संपन्न होते । पुरुष या नारी के विवाह में मंगल, गुरु एवं शुक्र की प्रमुख भूमिका होती है । इस विवाह में मंगल ग्रह की विचित्र भूमिका करती है । मंगल ही प्रमुख रूप से स्त्री एवं पुरुष के बीच विवाह के रूप में संबंध विच्छेद भी करता है । जिसे manglik dosh कहते हैं ।
यदि कुंडली में मंगल 1, 2, 4, 5, 7, 8 एवं 12 किसी एक स्थान में पड़ा हो तो उस कुंडली को मांगलिक कुंडली कहते हैं । पंचम स्थान (लग्न से) इसलिए विचारणीय है कि कुंडली में प्रेम विवाह का संकेत लग्न से पंचम एवं सप्तम स्थान से ही होता है ।
‘कुज’ (manglik dosh) कुंडली में प्रमुख रूप से विभिन्न लग्नों से निम्नलिखित प्रकार से घटित होता है, जबकि मंगल अपनी क्रूर भूमिका को अवश्य ही पूरा करता है ।
लग्न | मंगल का स्थान |
मेष | वृषभ |
वृषभ | वृषभ |
मिथुन | धनु |
कर्क | कुंभ |
सिंह | कुंभ |
कन्या | कन्या कन्या या तुला या धनु या मीन |
तुला | कन्या या तुला |
वृश्चिक | मिथुन या धनु |
धनु | मिथुन या धनु या मीन |
मकर | मकर धनु या कुंभ |
कुंभ | कुंभ कुंभ या मीन |
मीन | मिथुन या कन्या या कुंभ या मीन |
यदि किसी की कुंडली में मंगल वक्रीहो या मंगल अपनी क्रूर लीला 1, 2, 4, 5, 7, 8 या 12वें स्थान से खेल रहा हो, तो व्यक्ति या स्त्री manglik dosh से ग्रस्ति है और वैवाहिक जीवन अवश्य ही नारकीय होगा ।
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पुरुष की कुंडली में यदि शुक्र वक्री हो तो उस व्यक्ति का वैवाहिक अवश्य ही संघर्षपूर्ण या नारकीय होगा । यहां हमें यह याद रखने की आवश्यकता है कि पुरुष की कुंडली में शुक्र एवं स्त्री की कुंडली में मंगल की प्रमुख भूमिका होती है । शुक्र या मंगल वक्री होने पर देवाचार्य गुरु भी सहायक नहीं हो सकतें हैं ।
यहां मंगल एवं शुक्र ग्रहों से संबंधित कुछ अकाट्य Manglik dosh प्रस्तुत हैं –
1. यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में मंगल चौथे स्थान में कुंडली manglik dosh से ग्रस्ति होगा और स पीड़ित हो तो माता, सासु व दादी का स्वास्थ्य चिंता का विषय होगा एवं घर में अशांति एवं आर्थिक चिंता का वातावरण होगा ।
2. यदि किसी स्त्री की कुंडली में मंगल वक्री हो तो उस स्त्री का वैवाहिक जीवन अवश्य ही संघर्षपूर्ण होगा. इसी प्रकार यदि किसी पुरुष की कुंडली में शुक्र वक्री है, तो उसका वैवाहिक जीवन संघर्षपूर्ण एवं नारकीय होगा ही ।
3. अशुभ शुक्र लग्न में ही तथा 7 व 10वें स्थान में कोई ग्रह नहीं हो, तो ऐसे व्यक्ति का विवाद 25वें वर्ष में होता है तथा विवाह के शीघ्र पश्चात वह व्यक्ति दरिद्र हो जाता है तथा पत्नी का भी देहांत हो जाता है ।
4. पापी शुक्र यदि द्वितीयस्थ हो तथा गुरु 8 या 9 या 10वें स्थान में हो तो जातक का वैवाहिक जीवन कलहकारी होता है, पत्नी यदि नौकरी करती हो तो उसका चरित्र खराब हो जाता है. जातक को गुप्त रोग की संभावना रहती है तथा उसे शीघ्र पतन की बीमारी रहती है । जातक आजीवन दुर्भाग्यशाली व दुःखी रहता है ।
5. अशुभ शुक्र यदि पंचम में हो तथा सूर्य, चंद्र या राहु लग्न या सातवें स्थान में हो तो जातक कामी होता है. उसकी संतान उसके कहने में नहीं रहती. चोरी का भय रहता है तथा पत्नी का चरित्र ‘संदेहास्पद रहता है ।
6. यदि किसी जातक की जन्मकुंडली में शुक्र अष्टम स्थान में हो तो उसका चरित्र संदेहास्पद बना रहता है ।
7. नवम स्थान का शुक्र जातक को धनाढ्य, उद्योगपति व कुशाग्र बुद्धिवाला बनाता है. यदि यही शुक्र नवम स्थान में पाप ग्रहों के बीच हो या बुध या केतु के साथ हो तो संतान को कष्ट रहता है ।
8. द्वादश स्थान में अशुभ शुक्र पत्नी को पीड़ा देता है तथा यदि यही शुक्र द्वादश स्थान में हो एवं राहु 2, 6, 7 वा 12वें स्थान में हो तो वह manglik dosh से ग्रस्ति है और जातक का जीवन 25 वर्ष की आयु तक कष्टकारक रहता है ।
9. यदि किसी जातक या कन्या के जन्म चक्र में चंद्रमा लग्न में हो तथा मंगल 7वें घर में हो तो वह manglik dosh से ग्रस्ति है और उस जातक या सभी की विवाह के 8 वर्षों के अंदर मृत्यु होगी ही ।
10. यदि मंगल ग्रह की राशि (1 या 8) में चंद्र तथा शुक्र एक साथ हों एवं उस पर किसी पापी ग्रह की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक या स्त्री का चरित्र संदेहास्पद होगा ।
11. यदि वृष या सिंह या वृश्चिक या कुंभ राशि में चंद्र या लग्नेश किसी शुभ ग्रह से युति कर रहा तो ऐसी स्त्री सद्गुणों से विभूषित होगी ।
12. यदि किसी पुरुष के जन्म चक्र में चतुर्थ स्थान में सूर्य एवं शुक्र विराजमान (किंतु, ऐसी स्थिति में देशांतरीय दृष्टिकोण से सूर्य शुक्र के पीछे हो) हो तो ऐसे जातक की पत्नी सदैव रोगिणी” रहेगी. वक्री (Retrogade) शुक्र भी इसी प्रकार का फल देगा.
उपरोक्त उदाहरण में यदि चंद्रमा साथ ही पूर्ण है, तो जातक की पत्नी का देहांत शीघ्र हो जायेगा, जबकि कमजोर चंद्र पत्नी का देहांत लंबे समय के बाद करायेगा ।
13. यदि किसी पुरुष के जन्म चक्र में सप्तमेश लग्न में हो उसकी स्त्री आज्ञाकारी होगी. यदि यही योग किसी कन्या की कुंडली में हो तो वह manglik dosh से ग्रस्ति है और उसका पति उस कन्या का गुलाम रहेगा ।
14. यदि लग्नेश एवं सप्तमेश एक साथ लग्न में या सप्तम स्थान में हो ऐसे स्त्री एवं पुरुष का वैवाहिक जीवन अति मधुर होगा ।
15. यदि स्त्री जातक के जन्म चक्र में अष्टम स्थान में स्वगृही सूर्य या शनि के या दोनों साथ पड़े हों तो वह manglik dosh से ग्रस्ति है और ऐसी स्त्री बांझ होगी ।
16. स्त्री जातक के जन्म चक्र में अष्टम स्थान में चंद्रमा एवं बुध उस स्त्री को केवल एक संतान प्रदान करेगा ।
17. स्त्री जातक के जन्म चक्र में लग्न में शनि एवं सप्तम भाव में चंद्र या शुक्र स्त्री को बांझ (Barren) बनाता है ।
18. यदि मंगल सप्तम स्थान में हो तथा उस पर वृहस्पति की दृष्टि पड़ रही है, तो मंगल को दोष नष्ट हो जावेगा तथा स्त्री या पुरुष की कुंडली में मंगल का दोष पूर्णतया समाप्त हो जायेगा, किंतु इतना ध्यान रहे कि मंगल या गुरु वक्रीन हो ।
19. यदि पुरुष के जन्म चक्र में मंगल छठवें या आठवें स्थान में चंद्रमा के साथ विराजमान रहे, तो वह manglik dosh से ग्रस्ति है और पत्नी का देहांत विवाह 3 से 8वें वर्ष में होगा ही ।
20. यदि पुरुष के जन्म चक्र में लग्न में कोई नीच ग्रह रहे तो विवाह की तिथि से 8वें वर्ष में उस पुरुष की पत्नी के लिए निश्चित रूप अशुभ सिद्ध होगा ।
21. यदि किसी व्यक्ति के जन्म चक्र में चंद्रमा लग्न में हो तथा मंगल छठे या अष्टम स्थान में रहे तो उस व्यक्ति की मृत्यु अपने विवाह के शीघ्र बाद बिना किसी संतान के हुए होगा ।
22. यदि किसी कन्या की कुंडली में उसके सप्तम स्थान में दो पाप ग्रह हों तो वह विधवा हो जायेगी तथा काम- पीड़ा से ग्रसित रहेगी. यदि उस स्त्री के सप्तम स्थान में तीन पापी ग्रह हों तो वह स्त्री वेश्या होगी ।
23. वशिष्ट ऋषि के अनुसार यदि किसी कन्या के जन्म चक्र में पंचम स्थान में कोई पापी ग्रह किसी अन्य शत्रु ग्रह से दृष्टि खाता हो तो वह manglik dosh से ग्रस्ति है और ऐसी कन्या विवाह के बाद पति से त्याग दी जायेगी । ऐसी स्त्री को एक मृत्यु संतान भी हो सकती है
24. यदि पापी ग्रह 3 या 6 या 11वें स्थान में पड़ा हो एवं केंद्र या कोण में शुभ ग्रह में हों तथा सप्तमेश सप्तम भाव में स्वगृही पड़ा हो तो ऐसी स्थिति में मांगलिक दोष समाप्त हो जायेगा ।
25. मार्केडेय पुराण एवं विवाह खंड के अनुसार किसी स्त्री जातक का manglik dosh उसका कुंभ विवाह या भगवान विष्णु की प्रतिमा के साथ शास्त्रीय ढंग से कराने के बाद वर से विवाह कराने पर अवश्य समाप्त हो जायेगा.
सूर्य- अरुण संवाद के अनुसार उपरोक्त मांगलिक कन्या को कुंभ विवाह के पश्चात पांच नदियों के जल से स्नान करा देना चाहिये तथा कुंभ विवाह के पात्र का विसर्जन किसी नदी में अवश्य देना चाहिए । कुंभ विवाह के समय वरुण एवं भगवान विष्णु की प्रार्थना आवश्यक है ।
26. यदि देशांतर (Longitude) के दृष्टिकोण से किसी व्यक्ति के सप्तम स्थान में शुक्र एवं बुध एक साथ हों, तो वह व्यक्ति अविवाहित रहेगा, किंतु इस प्रकार का योग होने पर यदि वृहस्पति या पूर्ण चंद्र शुक्र एवं बुध को देखते हों तो उसव्यक्ति का विवाह बहुत से होगा ।
27. यदि किसी स्त्री के अष्टम स्थान में नीच (debilated) ग्रह पड़ा हो एवं कई शत्रु वर्गों में भी हो, तो वह स्त्री अपने विवाह के बाद अपने पति के लिए विनाशकारी सिद्ध होगी ।
28. यदि किसी जातक के जन्म चक्र में शुक्र से चौथे या आठवें स्थान में कोई फ्रूर ग्रह हो तथा साथ ही जातक का जन्म लन् या सूर्य मेष या कन्या या मीन में हो तो वह manglik dosh से ग्रस्ति है और उसकी पत्नी का देहांत अग्नि से होगा।
29. यदि किसी जातक का जन्मकालीन लग्नं, बिना किसी शुभ ग्रह की दृष्टि से, कन्या नवांश में पड़ता है, तो वह manglik dosh से ग्रस्ति है और वह व्यक्ति एक से अधिक कुमारियों के साथ अपनाचरित्र नष्ट करेगा ।
30. यदि किसी जातक के सप्तम स्थान में केतु विराजमान हो तथा वह केतु किसी शुभ ग्रह से नहीं अवलोकित हो या नहीं साथ हो तो वह manglik dosh से ग्रस्ति है और उस जातक की पत्नी की मृत्यु विवाह के पश्चात शीघ्र हो जायेगी.
इसी प्रकार यदि मंगल या शनि सातवें स्थान में ही तथा सप्तमेश छठें या बारहवें स्थान में हो तो उसके पत्नी की विवाह के पश्चात शीघ्र हो जायेगी. मृत्युयदि उपरोक्त उदाहरण में शनि या मंगल के स्थान में सूर्य हो तो पत्नी अपने पति को जहर देगी ।
31. यदि किसी जातक के जन्म चक्र में शुक्र चर (movable sign ) राशि का हो तथा वही शुक्र चर राशि के नवमांश में पड़ा हो (अर्थात वर्गोत्तम नवांश में नहीं) तो वह manglik dosh से ग्रस्ति है और ऐसे ग्रह संयोग में जातक केदो विवाह होंगे ।
32. यदि शुक्र कर्क राशि में हो तथा चंद्रमा मकर राशि में हो तो जातक के दो विवाह होंगे ।
33. यदि किसी जातक की कुंडली में सप्तम स्थान में सूर्य एवं शनि राहु या केतु के साथ हो तो वह manglik dosh से ग्रस्ति है और उस जातक का विवाह ऐसी स्त्री से होगा, जो उस व्यक्ति (पति) को जहर दे सकती है ।
34. वक्री गुरु मंगल के साथ होने पर व्यक्ति की पत्नी का शीघ्र देहांत हो जाता हैं. यदि मंगल एवं गुरु ग्रह (यह आवश्यक नहीं कि वे वक्री हो) कर्क या मकर राशि में हो तो वह manglik dosh से ग्रस्ति है और उपरोक्त फल (जहर देने का) घटित होगा ।
36. वृषम राशि में उत्पन्न जातक की स्त्री विवाह के बाद शीघ्र मर जाती है यदि शुक्र (लग्नेश) वृश्चिक राशि में हो ।
37. यदि सप्तम स्थान में राहु किसी क्रूर राशि में किसी अन्य क्रूर ग्रह के साथ हो तो वह manglik dosh से ग्रस्ति है और वह जातक अपने समस्त धन को काम क्रीड़ा (Sexual Pleasure) में बर्बाद कर देता है ।
38. सप्तम गुरु भाव में बुध एवं शनि एक गूंगी स्त्री प्रदान करता है ।
39. यदि किसी जातक के जन्म चक्रमें नवमेश नीच राशि का पड़ा हो तथा साथ ही वह चर नवमांश में हो तो उस जातक के दो विवाह होते हैं ।
40. यदि कोई जातक (Male) या जाति का (Female) मूल नक्षत्र या अश्लेषा नक्षत्र में पैदा हुआ है. तो वह manglik dosh से ग्रस्ति है वह क्रमशः श्वसुर या सासु के जीवन के लिए अनिष्ट होता/ होती है ।