Samudrik Shastra – सामुद्रिक शास्त्र

रोजगार-व्यापार के लिए सामुद्रिक शास्त्र -Samudrik Shastra

सही रोजगार व्यवसाय के चुनाव के लिए हथेली पर स्थित ग्रह क्षेत्रों की भी जानकारी प्राप्त कर लेना आवश्यक है. कारण ग्रह किसी व्यक्ति की विशेषताओं को बताते हैं. रेखाओं के प्रभाव पर शुभाशुभ प्रभाव डालते हैं।

भारतीय Samudrik Shastra में ग्रह क्षेत्रों का कोई उल्लेख नहीं मिलता, परंतु पाश्चात्य हस्तरेखाविदों ने प्रत्येक व्यक्ति के सही रोजगार व्यापार के चुनाव के लिए हथेली पर स्थित ग्रह क्षेत्र पर्वत का विशेष रूप से उल्लेख किये हैं. पाश्चात्य हस्तरेखाविदों ने संपूर्ण हथेली को 10 भागों में बांट कर प्रत्येक विभाग को एक-एक ग्रह क्षेत्र का नाम दिया है । इस ग्रह क्षेत्रों को पर्वत (mount) , गिरि अथवा मंडल के नाम से पुकारा जाता है ।

Samudrik Shastra - सामुद्रिक शास्त्र

Samudrik Shastra के अनुसार हथेली में ग्रह क्षेत्रों का विभाजन निम्नानुसार किया गया है-

1. अंगूठे के नीचे, जीवन रेखा से घिरा हुआ संपूर्ण भाग- शुक्र क्षेत्र.

2. तर्जनी अंगुली के नीचे वाला भाग- गुरु ( बृहस्पति) क्षेत्र.

3. मध्यमा अंगुली के नीचे वाला भाग- शनि क्षेत्र.

4. अनामिका अंगुली के नीचे वाला भाग- सूर्य क्षेत्र.

5. कनिष्ठिका अंगुली के नीचे बाला भाग- बुध क्षेत्र.

6. हृदय रेखा तथा मस्तिष्क रेखा के ऊपर, हथेली के बायें किनारे का ऊंचा उठा हुआ भाग- प्रथम मंगल क्षेत्र.

7. गुरु क्षेत्र के नीचे तथा शुक्र क्षेत्र के ऊपर, जीवन रेखा के उद्गम स्थल पर, हथेली के दायें किनारे का भाग- द्वितीय मंगल क्षेत्र.

8. प्रथम मंगल क्षेत्र के ऊपर, हथेली के बायें किनारे का वह उन्नत भाग, जो मणिबंध के समीप तक जाता है चंद्र क्षेत्र.

9. मस्तिष्क रेखा से ऊपर हथेली का पहला मध्य भाग- राहु क्षेत्र.

10. मस्तिष्क रेखा के नीचे राहु क्षेत्र के ऊपर से मणिबंध तक हथेली का दूसरा मध्य भाग- केतु क्षेत्र।

Samudrik Shastra के अनुसार हथेली क ग्रह क्षेत्रों पर विचार करते समय उसकी पुष्टता, सौंदर्य एवं विस्तार पर भी ध्यान देना चाहिये। पुष्ट ग्रह क्षेत्र शुभ फलदायक तथा अपुष्ट, विवर्ण एवं ढीले मास वाला ग्रह क्षेत्र अशुभ फल देने वाला होता है । उन्नत पर्वत जातक की आध्यात्मिक, मानसिक तथा बौद्धिक सुरुचि एवं उन्नति को प्रकट करते हैं ।

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